सीवी रमन (CV Raman) का नाम दुनिया को रमन प्रभाव (Raman Effect) देने के लिए ही नहीं, बल्कि भारत में विज्ञान (Indian Science) की शिक्षा के क्षेत्र में भी अपने विशेष योगदान के लिए जाना जाता है. इसीलिए जिस दिन उन्होंने रमन प्रभाव की खोज की थी उनके सम्मान में उस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है. उन्होंने अपनी वैज्ञानिक खोज के अलावा देश में वैज्ञानिक शिक्षा को भी बढ़ाने में विशेष योगदान दिया है और देश के कई बड़े वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने. 7 नवंबर को देश उनके जन्मदिन पर उन्हें याद कर रहा है.
बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे रमन
सर चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 में मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली के हिंदू तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता अच्छी खासी आय वाले स्कूल शिक्षक थे, जो बाद में विशाखापत्तनम के एक कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हो गए. 13 साल की उम्र में ही उन्होंने हायर सेकंड्री की शिक्षा पूरी कर ली थी और 16 साल की उम्र में उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंसी के कॉले में ऑनर्स के साथ भौतिकी में शीर्ष स्थान हासिल करते हुए अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली.
शुरु में ध्वनिकी और प्रकाशिकी
मास्टर्स की डिग्री हासिल करने केबाद उनका पहला शोधपत्र प्रकाश के विवर्तन (Diffraction of light) विषय पर था. पहले उन्होंने कोलकाता के भारतीय वित्तीय सेवा में असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल की नौकरी की और बाद में वे इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस से जुड़े जहां उन्हें अपने शुरुआती शोध करने का अवसर मिला. यहां उन्होंने ध्वनिकी (acoustics) और प्रकाश विज्ञान (Optics) में प्रमुख योगदान दिया.
वह छोटा सवाल जो बन गया बहुत खास
जब साल 1921 में सीवी रमन पहली बार लंदन गए थे. उस समय तक वे ध्वनिकी और प्रकाशिकी के विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हो चुके थे. उन्हें विशेष तौर पर तारयुक्त वाद्यों की आवाजों और कंपनों के अध्ययन के लिए जाना जाता था. लंदन से बम्बई के लिए लौटते समय की यात्रा के दौरान एक दिन वे शाम को डॉक पर चिंतन करते समय उन्हें भूमध्यसागर के गहरे नीले रंग ने उनका ध्यान खींचा और उनके मेन में सवाल उठा कि आखिर यह रंग नीला ही क्यों है.

सीवी रमन (CV Raman) ने शुरुआत में ध्वनिकी और प्रकाशिकी में बड़ा योगदान दिया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
फिर पता लगाया इसका कारण
इसी प्रश्न के उत्तर की खोज करते हुए उन्होंने सफलता पूर्वक दर्शाया कि समुद्र का नीला रंग वास्तव में सूर्य के प्रकाश का पानी के अणुओं के द्वारा किए गए बिखराव (प्रकीर्णन) के कारण है. इसी प्रभाव के कारण आसमान का रंग भी नीला दिखता है जहां हवा के कण सूर्य से आने वाले प्रकाश का बिखराव कर देते हैं. सीवी रमन ने प्रकाश प्रक्रीर्णन का प्रक्रिया पर गहन अध्ययन किया और साल 1928 में रमन इफेक्ट का सिद्धांत दिया.
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1930 में नोबेल पुरस्कार
यह प्रकाश के प्रकीर्णन की वह प्रक्रिया है जिसमें प्रकाश के कण जब किसी माध्यम में प्रवेश करते हैं तो प्रकाश की ऊर्जा का कुछ हिस्सा माध्यम के अणु ले लेते हैं जिससे प्रकाश की वेवलेंथ (तरंग दैधर्य) में बदलाव आ जाता है और प्रकाश का एक हिस्सा अपनी दिशा बदल लेता है. इसी सैक्ट्रिंग ऑफ लाइट यानि प्रकाश के विकीर्णन (बिखराव) के सिद्धांत के लिए रमन को 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था जिसे रमन प्रभाव या रमन इफेक्ट कहते हैं. और वे विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वे पहले भारतीय ने.

सीवी रमन (CV Raman) भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रथम निदेशक थे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
रमन रेखाएं और रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी
रमन ने सपैक्ट्रम विश्लेषण के जरिए प्रकाश के बर्फ से गुजरने के बाद स्पैक्ट्रम में बदलाव की पहचान की जो रमन रेखाओं के नाम से जानी जाती हैं. इन बदलावों का आधार भी रमन प्रभाव ही है. रमन इफेक्ट के सिद्धांत से ही रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी की शुरुआत हुई. इस रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का उपयोग बाद में अंतरिक्ष विज्ञान का खूब हुआ. इसके जरिए चंद्रयान एक ने चंद्रमा पर पहली बार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बर्फ के रूप में पानी की खोज की.
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रमन ने 1926 में इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स की शुरुआत की. इसके बाद साल 1933 में बेंगलुरू पहुंचे और भारतीय विज्ञान संस्थान के पहले निदेशक बन. उन्होंने उसी साल भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की. आजादी के बाद अपने अंतिम दिनों में, 1948 में उन्होंने रमन अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जहां उन्होंने अपने जीवन के अंत तक काम किया.
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