संशोधन 42वाँ – Amendment FORTY-SECOND (42) AMENDMENT in Hindi

विवरण

भारत का संविधान (42वाँ संशोधन) अधिनियम, 1976

भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
इस अधिनियम द्वारा संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए।
ये संशोधन मुख्यत: स्वर्णसिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए थे।
कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्र की अखंडता के उच्चादर्शों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने, नीति निर्देशक सिद्धांतों को अधिक व्यापक बनाने और उन्हें उन मूल अधिकारों, जिनकी आड़ लेकर सामाजिक-आर्थिक सुधारों को निष्फल बनाया जाता रहा है, पर वरीयता देने के उद्देश्य से किए गए।
इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के संबंध में एक नया अध्याय जोड़ा गया और समाज विरोधी गतिविधियों से चाहे वे व्यक्तियों द्वारा हों या संस्थाओं द्वारा, निपटने के लिए विशेष उपबंध किए गए।
क़ानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या निर्धारित करने तथा किसी क़ानून को संवैधानिक दृष्टि से अवैध घोषित करने के लिए कम-से-कम दो तिहाई न्यायाधीशों की विशेष बहुमत व्यवस्था करके न्यायापालिका संबंधी उपबंधों का भी संशोधन किया गया।
उच्च न्यायालयों में अनिर्णित मामलों की बढ़ती हुई संख्या को कम करने के लिए और सेवा, राजस्व, सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रगति के संदर्भ में कतिपय अन्य मामलों के शीघ्र निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को सुरक्षित रखते हुए प्रशासनिक और अन्य न्यायाधिकरणों के गठन के लिए उपबंध किया गया।
अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार क्षेत्र में भी कुछ संशोधन किया गया।

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