विवरण
शिक्षा किसी भी व्यक्ति एवं समाज के सभी दिशाओं के विकास तथा सशक्तीकरण के लिए आधारभूत मानव मौलिक अधिकार है। जिसे देश के उन सभी नागरिकों को उपलब्ध होना चाहिये जो लोग इस शिक्षा के लिए योग्य हैं, आमतौर पर शिक्षा देश के युवाओं और बच्चों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे लोग ही आगे चलकर देश का भविष्य तय करते हैं। यूनेस्को की शिक्षा के लिए वैश्विक मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के अनुसार विश्व के लगभग 135 देशों ने अपने संविधान में शिक्षा के अधिकार को अनिवार्य कर दिया है, तथा मुफ्त एवं भेदभाव रहित शिक्षा देश के सभी युवाओं को प्रदान कराने का प्रावधान भी किया है। हमारे देश भारत ने भी अपने देश के नव युवकों तथा शिशुओं के लिए बर्ष 1950 में 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा देने के लिए संविधान में प्रतिबद्धता का प्रावधान किया था। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत राज्यों के नीति निर्देशक सिद्धातों में शामिल किया गया है।
12 दिसंबर 2002 को भारत की संसद द्वारा भारतीय संविधान में 86 वां संशोधन किया गया और इसके अनुच्छेद 21 ‘ए’ को संशोधित करके शिक्षा को नव युवकों तथा शिशुओं के लिए मौलिक अधिकार बना दिया गया था।
बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह केंद्र तथा राज्यों के लिए कानूनी बाध्यता है, कि छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सभी को सुलभ हो सके। यदि कोई भी राज्य की सरकार या कोई व्यक्ति केंद्र के इस आदेश की अवमानना करता है, या करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति पर भारतीय संविधान की अवमानना करने के जुर्म में कड़ी से कड़ी सजा भी हो सकती है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के कुछ आवश्यक प्रावधान
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार भारत के सभी बच्चों के लिए शिक्षा के साथ – साथ कई आवश्यक तथ्यों का भी पालन किया गया है, जिसमें बहुत से प्रावधान दिए गए हैं जो शिक्षा को सभी बच्चों को उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक होते हैं।
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25 फीसदी तक आरक्षण लागू करना
इस अधिनियम के आदर्श नियमों में इस बात को लेकर कोई स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं दी गयी है, कि आखिर निजी स्कूलों में 25 फीसदी आरक्षण को किस तरह से लागू किया जाएगा। लेकिन शिक्षा के अधिकार अधिनियम को कारगर बनाने के लिए यह जरुरी है, कि कुछ महत्वपूर्ण सवालों के व्यवस्थित तरीके से विस्तृत रूप से जवाब दिए जाएं
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कमजोर और पिछड़े वर्ग की परिभाषा क्या है, और इसकी पुष्टि किस प्रकार से की जाती है?
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सरकार प्रारंभिक कक्षाओं के लिए योग्य बच्चों का चयन किस प्रकार से करेगी?
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पड़ोस या पूरे गांव / कस्बे / शहर द्वारा स्कूल में प्रवेश के लिए लॉटरी निकाली जाएगी?
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पड़ोस के हर इलाके में आपूर्ति और मांग का संतुलन किस प्रकार से साधा जाएगा?
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निजी स्कूलों को इस निशुल्क शिक्षा पर होने वाले व्यय की भरपाई किस प्रकार से की जाएगी?
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सरकार शिक्षा की पूरी प्रक्रिया पर किस प्रकार से निगरानी रखेगी? और शिक्षा की प्रक्रिया पर किस तरह के बाहरी निगरानी / सामाजिक लेखा लागू / प्रोत्साहित किया जाएगा?
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क्या होगा अगर ये छोटे बच्चे बड़ी कक्षाओं में अपना स्कूल बदलना चाहते हों?
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स्कूलों की मान्यता प्रदान कराने के लिए मापदंड
आदर्श नियमों के अनुसार किसी भी स्कूल को मान्यता प्राप्त करने के लिए एक गैर – लाभकारी सोसायटी या ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। स्कूलों को मान्यता केवल एक ही शर्त पर मिलनी चाहिए जब वह स्कूल और उस स्कूल के शिक्षक एक स्कूल के लिए आवश्यक सभी तथ्यों का पालन करते हों, क्योंकि एक स्कूल ही वह जगह होती है, जहां से सभी बच्चों का भविष्य तय किया जा सकता है। आम कानूनों के तहत स्कूल की मान्यता प्राप्त किसी भी व्यक्ति या संगठन को स्कूल चलाने का अधिकार होगा, लेकिन सरकारी सभी स्कूलों के लिए गुणवत्ता, जवाबदेही और पारदर्शिता के मापदंडों पर खरा उतरना अनिवार्य होगा।
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केवल स्कूल के लिए ही भवन का इस्तेमाल
नियमों के अनुसार तो स्कूल के भवन का इस्तेमाल केवल शिक्षा और कौशल के विकास के लिए ही किया जा सकता है। फिर भी आज के समय में कई निजी स्कूलों का इस्तेमाल सामुदायिक भवन, मतदान केंद्र और प्राकृतिक विपदा में आसरे के तौर पर भी किया जाता है, और कुछ स्कूलों का प्रयोग तो शादी विवाह और छोटी या बड़ी पार्टी आदि के लिए किया जा रहा है। कुछ सरकारी स्कूलों में तो सरकार ने स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद स्कूल भवन में कम्प्यूटर प्रशिक्षण, जीवन – कौशल की अन्य क्लासों और ट्रेनिंग सेंटर की इजाजत दे रखी है, ताकि इससे मिलने वाली राशि स्कूल के लिए इस्तेमाल की जा सके। जब तक स्कूल से जुड़े अधिकारियों (स्कूल प्रबंधन कमेटी सहित) को इस बात का अनुभव नहीं होता है, कि स्कूल की शिक्षा का मूल उद्देश्य प्रभावित हो रहा है, तब तक देश में स्कूल व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने में काफी ज्यादा परेशानियां सामने आ सकती हैं।
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स्कूल में पढ़ाने के लिए शिक्षक
शिक्षा का अधिकार अधिनियम ‘बच्चों,’ ‘स्कूल’ और अन्य ‘अधिकारियों’ को तो परिभाषित करता है, लेकिन दुर्भाग्य से इसमें ‘शिक्षक’ का उल्लेख नहीं किया जाता है, जबकि कोई भी स्कूल केवल तब ही पूर्ण हो सकता है, जब उसमें ज्ञानी और अनुभवी शिक्षक मौजूद हों, जिनका उद्देश्य अपने छात्र और छात्राओं को केवल ज्ञान ही प्रदान करना नहीं है, बल्कि उन बच्चों का चहुमुखी विकास कराना भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिसके लिए बच्चों के साथ – साथ शिक्षक को भी शिक्षा की दिशा में अग्रसर होना बहुत जरूरी है। आदर्श नियम की धारा 18, राज्य या स्थानीय प्राधिकरण के शिक्षकों पर ही लागू होती है।
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स्कूल के मैनेजमेंट की कमेटी
आदर्श नियमों के अनुसार स्कूल के प्रबंधन कमेटियों को शिक्षकों के कर्तव्यों के पालन पर नजर रखने का अधिकार तो दे दिया है, लेकिन इसका पालन सुनिश्चित कराने के अधिकार नहीं दिए गए हैं। अगर हम चाहते हैं, कि स्कूल प्रबंधन कमेटियां अपना काम प्रभावशाली तरीके से करें, तो उन्हें भी इसके लिए पर्याप्त अधिकार दिए जाने चाहिए। इसलिए शिक्षकों की सेवा और शर्तों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए कि अधिनियम की धारा 24 (2) के आधार पर स्कूल प्रबंधन कमेटियां शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी कर सकती हैं। जिससे सभी शिक्षकों में कहीं न कहीं अपने खिलाफ कार्यवाही होने के लिए एक डर जरूर बैठ जायेगा और वे अपना काम और भी लगन और मेहनत से करेंगे।
स्कूल मैनेजमेंट कमेटियों के सदस्य शिक्षकों को भी अपने दायित्वों की जानकारी कराने के लिए कार्य करते हैं, ताकि समाज के सभी सदस्यों की जवाबदेही तय हो सके। ये शिक्षक लोग केवल स्वयंसेवी के रूप में काम नहीं कर सकते हैं, बल्कि उन्हें उनके काम के बदले कुछ पारिश्रमिक भी मिलना चाहिए, जो कि आज के समय कुछ इस प्रकार हो चुका है, कि कई लोगों ने तो इसे अपना धंधा ही बना लिया है।
भारत माता के महान सपूतों में से एक, गोपाल कृष्ण गोखले यदि आज के युग में हमारे बीच होते तो देश के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार के अपने सपने को साकार होते देखकर सबसे अधिक प्रसन्न होते। गोखले वही व्यक्ति थे, जिन्होंने आज से एक सौ वर्ष पहले ही इम्पीरियल लेजिस्लेटिव एसेम्बली से यह मांग की थी कि भारतीय बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया जाए। इस लक्ष्य तक पहुंचने में हमें एक सदी का समय लगा है।
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