अनुच्छेद 360- Article 360 in Hindi| भारतीय संविधान

विवरण

(1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्‍घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकेगा।
[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा–
(क) किसी पश्चात्‌‌वर्ती उद्‍घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या परिवर्तित की जा सकेगी;
(ख) संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है:

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्‍घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोकसभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्‌घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‌घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्‌घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।]

(3) उस अवधि के दौरान, जिसमें खंड (1) में उल्लिखित उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिर्दिष्ट किए जाएँ, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्य क और पर्याप्त समझे।

(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–
(क) ऐसे किसी निदेश के अंतर्गत–
(i) किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध;
(ii) धन विधेयकों या अन्य ऐसे विधेयकों को, जिनको अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित किए जाने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध, हो सकेंगे;

(ख) राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।

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संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया था और उसका संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया।

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