विवरण
(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।]*
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय-
(क) ऐसे न्यायालयों से विवरण मंगा सकेगा।
(ख) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिए साधारण नियम और प्रारूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा, और
(ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रारूप विहित कर सकेगा।
(3) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियाँ भी स्थिर कर सकेगा, जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यावसाय करने वाले अटर्नियों, अधिवक्ताओं और प्लीडरों को अनुज्ञेय होंगी।
परंतु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किए गए कोई प्रारूप या स्थिर की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिए राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियाँ देने वाली नहीं समझी जाएगी।
(5)**
————————
* खंड (1) संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) और तत्पश्चात संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से ) प्रतिस्थापित होकर उपरोक्त रूप में आया।
** संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंत:स्थापित किया गया और उसका संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया।
भारत का संविधान , अधिक पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें