विवरण
(1) अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी** प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए और किसी अन्य प्रयोजन के लिए*** उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई**** निकालने की शक्ति होगी।
(2) किसी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति को निदेश, आदेश या रिट निकालने की खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उन राज्यक्षेत्रों के संबंध में, जिनके भीतर ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए वादहेतुक पूर्णत: या भागत: उत्पन्न होता है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी उच्च न्यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी किया जा सकेगा कि ऐसी सरकार या प्राधिकारी का स्थान या ऐसे व्यक्ति का निवास-स्थान उन राज्यक्षेत्रों के भीतर नहीं है।
(3) जहाँ***** कोई पक्षकार, जिसके विरुंद्ध खंड (1) के अधीन किसी याचिका पर या उससे संबंधित किसी कार्यवाही में व्यादेश के रूप में या रोक के रूप में या किसी अन्य रीति से कोई अंतरिम आदेश-
(क) ऐसे पक्षकार को ऐसी याचिका की और ऐसे अंतरिम आदेश के लिए अभिवाक के समर्थन में सभी दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ, और
(ख) ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर,
दिए बिना किया गया है, ऐसे आदेश को रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय को आवेदन करता है और ऐसे आवेदन की एक प्रतिलिपि उस पक्षकार को, जिसके पक्ष में ऐसा आदेश किया गया है या उसके काउंसेल को देता है, वहाँ उच्च न्यायालय उसकी प्राप्ति को तारीख से या ऐसे आवेदन की प्रतिलिपि इस प्रकार दिए जाने की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर, इनमें से जो भी पश्चातवर्ती हो, या जहाँ उच्च न्यायालय उस अवधि के अंतिम दिन बंद है, वहाँ उसके ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति से पहले जिस दिन उच्च न्यायालय खुला है, आवेदन को निपटाएगा और यदि आवेदन इस प्रकार नहीं निपटाया जाता है तो अंतरिम आदेश, यथास्थिति, उक्त अवधि की या उक्त ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति पर रद्द हो जाएगा।
(4) इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति से, अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा।#
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* संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से ) अनुच्छेद 226 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
** संविधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) \”किंतु अनुच्छेद 131क और अनुच्छेद 226क के उपबंधों के अधीन रहते हुए\” शब्दों, अंकों और अक्षरों का लोप किया गया।
*** संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979से) जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्याक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी हैं अथवा उनमें से किसी को \”शब्दों से आरंभ होकर\” न्याय की सारवान निष्फलता हुई है, किसी क्षति के प्रतितोष के लिए\” शब्दों के साथ समाप्त होने वाले भाग के स्थान पर प्रतिस्थापित।
**** संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5) और खंड (6) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
***** संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5) और खंड (6) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
# संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के रूप में पुनसंख्याकित किया गया।
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